लिटरेरी फोरम या पोल्ट्री फोरम

लिटरेरी फोरम या पोल्ट्री फोरम

यह हमारा सौभाग्य था की कालेज की बेरंग ज़िन्दगी में कुछ रंग भरने के लिए एक सांस्कृतिक मंच था जिसे हम लोग लिटरेरी फोरम कहते थे. इस को बनाने और ज़िंदा रखने का पूरा श्रेय डॉक्टर सरोज सानन को जाता है. इसके शुरुआती सालों में डॉक्टर जे एल भाटिआ और बाद में डॉक्टर संतोख सिंह उनका सहयोग करते रहे. जो विद्यार्थी इस फोरम को पसंद नहीं करते थे मज़ाक में इसे पोल्ट्री फोरम कहते थे.

मुझे याद है जब मैं पहली बार लिटरेरी फोरम की मीटिंग में गया उस दिन पिंगलवाड़ा के संस्थापक भगत पूर्ण सिंह मुख्य मेहमान थे . हम से दो साल सीनियर डॉक्टर कमल ज्योति फोरम के सचिव थे.

भगत जी एक कर्मयोगी थे. गरीबों, बेसहाये लड़कियों , बीमारों और बेघर लोगों की सेवा में उन्होंने एक मिसाल स्थापित की थी. उस शाम भगत जी सबसे पहले पहुंचे थे. सादा लिबास पहने वह अपनी साइकिल – रेहड़ी खुद चला कर आये थे और फार्माकोलॉजी लेक्चर थिएटर के बाहर खड़े थे. रेहड़ी में वह पिंगलवाड़ा प्रेस द्वारा प्रकाशित किताबें, पुस्तिकाएं, और इश्तिहार लाये थे. इतने में कमलज्योति और अन्य लोग आगये और उन्हें लेक्चर थिएटर के अंदर ले गए. डॉ. सानन भी आगये और मीटिंग की कार्रवाई शूरु हुई . भगत जी ने अपने प्रिय टॉपिक पर्यावरण की देखभाल, मरीज़ों की सेवा, और बेघर लड़कियों के रखरखाव पर बातचीत की. वह एक ज्ञानवान और दूर द्रष्टा व्यक्ति थे. बाद में उन्होने पिंगलवाड़ा की किताबें हम सब को दीं. भगत जी का प्रेरणादायक व्यकितत्व मुझे आज भी एक संवेदनशील इंसान बनने के लिए प्रेरित करता है . राष्ट्रीय गान के साथ उस दिन की बैठक समाप्त हुई .

लिटरेरी फोरम की बैठकें लगभग हर महीने होती थीं . इनमें लोग अपने किस्से कहानियां, कविताएं , और अपने जीवन के तजुर्बे साझा करते. हँसते हंसाते साठ मिनट की बैठक कैसे ख़त्म हो जाती पता ही नहीं चलता. डॉ. सानन खुद औरोबिन्दो आश्रम पांडिचेरी आती जाती रहती थीं. उनके स्वभाव में दिव्यता और रूहानियत थी . लिटरेरी फोरम स्टूडेंट्स के व्यक्तितत्व को निखारता था और उन्हें बेहतर डॉक्टर बनने की प्रेरणा देता था. मैं तो बेसब्री से इसकी बैठकों का इंतज़ार करता था .

फोरम डिबेट, डेक्लामेशन , और कविता पाठ मुकाबले भी आयोजित करता. बाद में इसे कल्चरल वीक का नाम दे दिया गया. अब ड्रामा और शामे ग़ज़ल इसका हिस्सा बन गए. हर साल कल्चरल वीक के वह सात दिन कॉलेज के दिनों के सबसे ज़्यादा यादगार पल हैं .

मुझे याद है एक साल डिबेट का विषय शराब बंदी था और मैं इस के विरुद्ध बोला था . उन दिनों शराब बनाने वाली कंपनी मोहन मेंकिन्स की एक डायरी मेरे पास थी . इस डायरी के हर पृष्ठ पर शराब की तारीफ में एक शेयर था. में हिंदी में बोला था और लगभग एक दर्जन शेयर इस डायरी में से लेकर सुनाये थे . खचाखच भरे एनाटोमी लेक्चर थिएटर में मैने दर्शकों की भरपूर वाह – वाही बटोरी थी . उन में से दो-एक शेयर मुझे अभी भी याद है . अर्ज है:

ऐ शेख तेरी इबादत में दम है तो यह मस्जिद हिला के दिखा

नहीं तो दो घूंट पी और मस्जिद हिलती देख ले

टूटी नहीं है साकी रिंदों के हाथ से

खुद ही नशे में चूर थी बोतल शराब की

(रिन्द: शराबी)

उन दिनों की जानी मानी अमृतसर दूरदर्शन की हसीन न्यूज़ एंकर जीवन ज्योति और डॉ. फिलिप्स डिबेट को जज कर रहीं थी . मेरी हिंदी डॉ. फिलिप्स के सर के ऊपर से निकल गयी और उन्हें कुछ समझ नहीं आया और मुझे दर्शकों की तालियों से ही संतोष करना पड़ा .

मुझे याद है बलदेव प्रस्ताव के पक्ष में बोला था और लीडर ऑफ़ दा हाउस था . अपने जवाबी भाषण में उसने कहा की मैं ऐसे बोल रहा था जैसे मैने खूब पी रखी हो . शायद इस से ज़्यादा मेरी तारीफ वह नहीं कर सकता था .

कुछ सालों बाद जीवन ज्योति मुझे किसी शादी मे मिलीं . उन्हें मेरा भाषण याद था . उन्होने बताया की डॉ फिलिप्स के इलावा बाकी दोनों जज मुझे पहला इनाम देना चाहते थे पर वह नहीं मानी. पर शायद मुझे इस का फायदा सालों बाद मिला . फाइनल प्रॉफ के इम्तिहान में डॉ. फिलिप्स जब चुन-चुन कर सपलीआं लगा रही थीं उन्हें शायद मेरी मासूम शराबी वाली परफॉरमेंस याद आ गयी और में बच गया.

आखिर में दो शब्द मेरे उन दोस्तों के लिए जो लिटरेरी फोरम को पोल्ट्री फोरम कहते थे . शामे ग़ज़ल के दौरान पिछली कुर्सिओं पर बैठ कर सबसे ज़्यादा शोर वही मचाते थे , शायद दो घूँट पीकर .

दिनेश कुमार शर्मा